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यह हिदी व्याकरण काशी-नागरी प्रचारिणी सभा के अनुरोध और उत्तेजन से लिखा गया है। सभा ने लगभग पाँच वर्ष पूर्व हिदी का एक सर्वांग- पूर्ण व्याकरण लिखवाने का विचार करके इस विषय के दो तीन ग्रंथ लिखवाये थे,
जिनमे बाबू गंगाप्रसाद, एम० ए० और पं० रामकर्ण शर्मा के लिखे हुए व्याकरण अधिकांश में उप योगी निकले । तब सभा ने इन ग्रंथों के आधार पर, अथवा स्वतंत्र रीति से, एक विस्तृत हिंदी व्याकरण लिखने का गुरु भार मुझे सौंप दिया।
इस विषय में पं० महावीरप्रसादजी द्विवेदी और पं० माधव राव सप्रे ने भी सभा से अनुरोध किया था, जिसके लिए मैं आ दोनो महाशयों का कृतज्ञ हूँ। मैंने इस कार्य मे किसी विद्वान् को आगे बढ़ते हुए न देखकर
अपनी अल्पज्ञता का कुछ भी विचार न किया और सभा का दिया हुआ भार धन्यवाद-पूर्वक तथा कर्त्तव्य बुद्धि से ग्रहण कर लिया उस भार को अत्र में, पाँच वर्ष के पश्चात्, इस पुस्तक के रूप में, यह कहकर सभा को लौटाता हूँ कि “र्पित है, गोविंद, तुम्हीं को वस्तु तुम्हारी ।”
इस ग्रंथ की रचना में हमने पूर्वोक्त दोनों व्याकरणों से यत्र-तत्र सहायता ली है और हिंदी व्याकरण के आज तक छपे हुए हिंदी और अँगरेजी ग्रंथो का भी थोड़ा-बहुत उपयोग किया है।
सबसे अधिक सहायता हमें दामले कृत “शास्त्रीय मराठी व्याकरण” से मिली है जिसकी शैली पर हमने अधिकांश मे अपना व्याकरण लिखा है। पूर्वोक्त पुस्तक से हमने हिदो मे घटित होनेवाले व्याकरण-विषयक कई एक वर्गीकरण,
विवेचन, नियम और न्याय सम्मत लक्षण, आवश्यक परिवर्त्तन के साथ, लिये हैं। संस्कृत व्याकरण के कुछ उदाहरण भी हमने इस पुस्तक से संग्रह किये हैं।
पूर्वोक्त ग्रंथों के अतिरिक्त अँगरेजी, बँगला और गुजराती व्याकरयों से भी कही-कहीं सहायता ली गई है इन सब पुस्तकों के लेखकों के प्रति हम, नम्रतापूर्वक, अपनी हार्दिक कृतज्ञता प्रकट करते हैं।
लेखक | पं. कामताप्रसाद गुरु – Pt. Kamtaprasad Guru |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 696 |
PDF साइज़ | 21.3 MB |
Category | साहित्य(Literature) |